पत्र के जरिए बारी समाज से माफी मांगी, वाल्मीकि समाज को किया नजरअंदाज | Apologizing to Bari society by issuing a letter, ignored Valmiki society

उदयपुर35 मिनट पहले

पत्र के जरिए कटारिया ने बारी समाज से मांगी माफी है, लेकिन वाल्मीकि समाज को नजरअंदाज किया है।

विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने अपनी विवादित टिप्पणी पर एक बार फिर माफी मांगी है। उन्होंने इस बार माफी तो मांगी लेकिन वाल्मीकि समाज का जिक्र तक नहीं किया। ऐसे में कटारिया की मुसीबतें कम होती दिखाई नहीं दे रही है। इधर, माफीनामे के बाद भी कटारिया को लेकर वाल्मीकि समाज में आक्रोश शांत हो। इसके चांस कम हैं।

बता दें कि बीते दिनों गोवर्धन सागर की पाल पर आयोजित पन्नाधाय मूर्ति अनावरण समारोह में कीरत बारी को लेकर विवादित बयान दिया था। इसके बाद से बारी समाज और वाल्मीकि समाज में आक्रोश व्याप्त था। इस मामले में सोमवार को नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने माफी तो मांगी लेकिन सिर्फ बारी समाज से ही। वाल्मीकि समाज को इस पत्र में नजरअंदाज रखा गया। जबकि वाल्मीकि समाज ने 7 सितंबर तक की चेतावनी दी है। इधर, वाल्मीकि समाज का आक्रोश अब भी बना हुआ है।

सोमवार को जारी पत्र में गुलाबचंद कटारिया ने कीरत बारी को बारी माना और अपनी गलती सुधार की लेकिन वाल्मीकि समाज के लिए असंवैधानिक शब्दों के उपयोग की भूल जस की तस ही रही। माफी पत्र में कटारिया बार-बार कवि मासूम की कविताओं का हलावा देते रहे। लेकिन वाल्मीकि समाज का इसमें कही कोई जिक्र नहीं किया गया।

पत्र में ये लिखा
उन्होंने जारी किए पत्र में कहा कि उदयपुर में पन्नाधाय, उदयसिंह एवं चंदन की मूर्ति के लोकार्पण के समय मैंने कीरत काका जो उदय सिंह जी को टोकरे मे रखकर झूठी पत्तले डालकर उन्हें सुरक्षित महल से बाहर ले जाने का कार्य करते है वह वास्तव में मेवाड़ के स्वर्णिम इतिहास के रूप मे जाना जाता है। मैंने भी कीरत काका का वर्णन करते समय जो शब्द उपयोग किए वह मेवाड़ मे गाई जाने वाली कवि निरंजन मासूम की कविता पन्ना का बलिदान से लिया गया है। उस कविता का अभी तक कही भी विरोध नहीं होने के कारण उन्होंने कीरत काका के लिए जिन शब्दों का उपयोग किया वह वास्तव में बारी समाज के संपूर्ण जनमानस को उद्वेलित करने वाला हैं। मैंने उसके बारे में विभिन्न प्रकार की पाठ्य पुस्तक, नाटक और उपलब्ध सामग्री को पढऩे का प्रयास किया उसमे डॉ. राजकुमार वर्मा का दीपदान का नाटक मुख्य है। जिसमें कीरत काका बारी समाज का लिखा चित्रित हुआ हैं।

उन्होंने कहा कि बारी समाज का आक्रोशित होना स्वभाभिक हैं। मेरा समाज का अपमान करने का कोई उद्देश्य नहीं था बल्कि कीरत काका के वे इस योगदान को जन-जन तक पहुंचाने का उद्देश्य मात्र था।

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