शिमला9 मिनट पहलेलेखक: देवेंद्र हेटा
हिमाचल प्रदेश विधानसभा की सभी 68 सीटों के लिए शनिवार को मतदान हुआ। 5 बजे तक 65.50% वोट पड़े। हालांकि यह फाइनल आंकड़े नहीं हैं, क्योंकि 5 बजे के बाद भी राज्य के 12 जिलों में लगभग 100 बूथों पर मतदाताओं की लाइनें लगी रहीं। 2017 के विधानसभा चुनाव में रिकॉर्ड 75.57% वोटिंग दर्ज की गई थी। इस बार भी मतदान का फाइनल आंकड़ा 70% के आसपास पहुंच सकता है।
राजनीतिक जानकारों के अनुसार, पिछली बार से 5% कम मतदान डिसाइडिंग फैक्टर हो सकता है। इस बार लोगों का मतदान ‘रिवाज’ बदलने के लिए है या ‘राज’ बदलने के लिए, यह तो 8 दिसंबर को ही पता चलेगा, मगर प्रचार-पोलिंग और वोटिंग पर्सेंट से मिल रहे संकेत किस ओर इशारा कर रहे हैं, यह जानने के लिए पढ़िए दैनिक भास्कर का एनालिसिस…

हिमाचल प्रदेश में इस बार कांग्रेस और भाजपा में कांटे की टक्कर रही। 68 में से लगभग 24 सीटें ऐसी रहीं, जहां दोनों दलों के बागियों ने मुकाबला त्रिकोणीय बनाया। इनमें से 10 सीटों पर तो बागी मुख्य मुकाबले में नजर आए। अब प्रदेश की सत्ता किसे मिलेगी? इसका फैसला इन्हीं 10 सीटों के नतीजे करेंगे।
मतदान से 6 दिन पहले यानी 4 नवंबर तक राज्य में कांग्रेस अच्छी स्थिति में दिख रही थी। 5 और 9 नवंबर को हिमाचल के 4 जिलों में हुई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 4 रैलियों के बाद BJP की स्थिति में सुधार हुआ। विपक्ष में होने के नाते कुछ फैक्टर कांग्रेस पार्टी के पक्ष में जरूर गए, लेकिन BJP ने जिस तरह चुनाव-प्रचार का पूरा ताना-बाना PM मोदी के चेहरे के इर्द-गिर्द बुना, उसका फायदा पार्टी को निश्चित तौर पर मिलता दिख रहा है।

BJP को सबसे बड़ा खतरा बागियों से तो उम्मीद भी उन्हीं से
5 साल की एंटी इनकमबेंसी, ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) पर ढुलमुल स्टैंड, बेरोजगारी, महंगाई और बड़ी संख्या में बागियों का मैदान में उतरना BJP के खिलाफ जाता दिख रहा है। कांग्रेस के लिए इन्हीं चीजों ने प्लस पॉइंट का काम किया।
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि बागी BJP को 12 सीटों पर सीधा नुकसान पहुंचा रहे हैं। राज्य की 68 विधानसभा सीटों में से 21 सीटों पर टिकट न मिलने से नाराज होकर BJP के नेता निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे। कांग्रेस की स्थिति इस मामले में कुछ बेहतर रही, क्योंकि उसे 7 सीटों पर ही बगावत का सामना करना पड़ा।
यह बात सही है कि कांग्रेस के मुकाबले BJP के बागियों की संख्या अधिक रही, लेकिन अगर यह बागी जीते तो इनके भाजपा में ही वापसी करने के चांस ज्यादा रहेंगे। उस सूरत में BJP की सरकार बनने के चांस बढ़ जाएंगे।

PM ने भांप लिया, बगावत से हो रहा नुकसान
राज्य में 5 साल से सरकार चला रही BJP इस बार ‘रिवाज’ बदलने का नारा लेकर मैदान में उतरी। एंटी इनकमबेंसी से निपटने के लिए पार्टी ने अपने 10 सीटिंग MLA के टिकट काट दिए और 2 मंत्रियों की सीटें बदल दीं। ‘अनुशासित’ मानी जाने वाली BJP में इस फैसले के बाद जिस तरह की बगावत देखने को मिली, वैसा हिमाचल के इतिहास में पहले कभी नहीं देखा गया।
राज्य की कुल 68 सीटों में से 31% यानि 21 सीटों पर BJP के ही नेता आजाद होकर मैदान में उतर गए। हिमाचल से ही ताल्लुक रखने वाले BJP के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत सभी नेताओं ने इन बागियों को मनाने के लिए सारे जत्न कर लिए, मगर सफलता नहीं मिली।
PM नरेंद्र मोदी भी चुनाव में बागियों की वजह से हो रहे नुकसान को भांप चुके थे। इसी वजह से उन्हें सोलन, हमीरपुर, कांगड़ा और मंडी जिले में की गई अपनी आखिरी चारों रैलियों में मंच से अपील करनी पड़ी कि लोग अपना वोट पार्टी कैंडिडेट का चेहरा देखकर नहीं, बल्कि ‘कमल’ का फूल देखकर दें। मोदी को यहां तक कहना पड़ गया कि कमल के फूल काे दिया गया हर वोट खुद उन्हें मजबूत करने का काम करेगा।

हिमाचल भाजपा के नेता और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने इस बार विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा। वर्ष 1984 के बाद यह पहला मौका रहा जब धूमल प्रदेश में चुनाव से दूर रहे।
धूमल फैक्टर भी अहम
हिमाचल के पूर्व CM प्रेम कुमार धूमल ने इस बार चुनाव नहीं लड़ा। 1984 के बाद यह पहला मौका रहा, जब धूमल चुनावी दंगल से बाहर रहे। BJP के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और धूमल के बीच 36 का आंकड़ा है। मुख्यमंत्री जयराम ने भी पिछले 5 बरसों में धूमल समर्थकों को भाव नहीं दिया। राज्य में यह चर्चा आम है कि अपने समर्थकों की अनदेखी के कारण ही धूमल इस बार न चुनावी रण में उतरे, न प्रचार के लिए हमीरपुर जिले से बाहर निकले।
पहाड़ की परंपरा कांग्रेस के पक्ष में
हिमाचल प्रदेश में हर 5 साल बाद सरकार बदलने का ‘रिवाज’ है और इस नाते यह बात भी कांग्रेस के पक्ष में है। साल 1986 से आज तक हिमाचल में कोई भी पार्टी अपनी सरकार रिपीट नहीं कर पाई। वीरभद्र सिंह, शांता कुमार और प्रेम कुमार धूमल जैसे दिग्गज नेता भी अपनी पार्टी को लगातार दूसरी बार सत्ता में नहीं पहुंचा सके।
वीरभद्र सिंह अब इस दुनिया में नहीं हैं और शांता-धूमल की जोड़ी इस चुनाव से ‘बाहर’ रही। यही वजह रही कि BJP ने भी मिशन रिपीट को सफल बनाने के लिए CM जयराम की जगह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा सामने रखा।
दूसरी ओर कांग्रेसी नेता अपनी रैलियों में हिमाचली लोगों से पहाड़ का रिवाज कायम रखने की अपील करते रहे।

OPS कांग्रेस का सबसे बड़ा हथियार
हिमाचल में किसकी सरकार बनेगी, इसमें राज्य के कर्मचारी अहम भूमिका निभाते हैं। इस विधानसभा चुनाव में कर्मचारियों से जुड़ी ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) सबसे बड़ा मुद्दा रही। कांग्रेस ने इस मुद्दे को आक्रामक तरीके से उठाया। वहीं BJP पूरी तरह बैकफुट पर नजर आई।
राज्य के लगभग हर दूसरे घर का कोई न कोई मेंबर सरकारी नौकरी में है, जिन्हें OPS का इश्यू सीधा प्रभावित करता है। इसी वजह से कांग्रेस ने अपनी 10 गारंटियों में OPS को सबसे ऊपर रखा और सरकार बनने के बाद पहली ही कैबिनेट में इसे लागू करने का ऐलान किया।

BJP को ‘मोदी मैजिक’ से उम्मीद
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस समय देश के सबसे बड़े स्टार प्रचारक हैं और उनका मैजिक देश के कई राज्यों में चल चुका है। हिमाचल में मोदी और BJP के दूसरे तमाम नेताओं ने आक्रामक ढंग से कैंपेनिंग की। अगर उत्तराखंड, UP और हरियाणा की तरह हिमाचल में भी मोदी का जादू चल गया तो BJP सत्ता में वापसी कर सकती है।
दूसरी ओर कांग्रेस ने अपनी कैंपेनिंग स्थानीय मुद्दों के इर्द-गिर्द ही फोकस रखी। उसने महंगाई के अलावा बेरोजगारी, OPS, पुलिस भर्ती और PPE किट में घोटाले का मुद्दा उठाया। पार्टी ने सेब बागवानों के मुद्दे भी उठाए।
मंडी-कांगड़ा में घट सकती हैं BJP की सीटें
वर्ष 2017 के चुनाव में मंडी जिला की 10 में से 9 सीटें भाजपा के पास थीं, जबकि जोगेंद्रनगर से निर्दलीय जीते। MLA प्रकाश राणा भी भाजपा के साथ रहे। इसी तरह कांगड़ा जिला में भी BJP के पास 15 में से 11 सीटें थीं। कांग्रेस के 3 ही विधायक विधानसभा पहुंचे थे। इस बार इन दोनों जिलों में BJP को कुछ सीटें गंवाकर झटका लग सकता है। सोलन, सिरमौर, बिलासपुर, हमीरपुर जिलों में बराबरी का मुकाबला लग रहा है।

हिमाचल में 15 साल बाद घटा मतदान प्रतिशत
हिमाचल में वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव के बाद हर चुनाव में पोलिंग प्रतिशत बढ़ा है। वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में 71.61% पोलिंग हुई थी, जो 2012 के चुनाव में बढ़कर 73.51% पर पहुंच गई। साल 2017 के चुनाव में इसमें लगभग 2 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई और पोलिंग प्रतिशत बढ़कर 75.56% पर पहुंच गया।
वोटिंग प्रतिशत बढ़ने पर हर बार सत्ता परिवर्तन हुआ। इस बार अभी तक मतदान प्रतिशत के फाइनल आंकड़े नहीं आए हैं, लेकिन यह 71% के आसपास रह सकता है। ऐसे में 4% कम मतदान नतीजों को किसी भी तरफ मोड़ सकता है।
ओपिनियन पोल BJP के पक्ष में
हिमाचल में मतदान से पहले 4 ओपिनियन पोल आए। इनमें से 3 में प्रदेश में भाजपा की सरकार रिपीट होती दिखाई गई, जबकि चौथे में कांग्रेस को बहुमत मिलता दिखाया गया। अगर यह ओपिनियन पोल सही साबित हुए तो प्रदेश में 35 साल बाद कोई पार्टी सरकार रिपीट करेगी।
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