उपराष्ट्रपति चुनाव: देश को आज नया उपराष्ट्रपति (Vice President) मिलने वाला है. उपराष्ट्रपति चुनाव (Vice President Election 2022) के लिए संसद भवन में आज सुबह 10 बजे से शाम पांच बजे वोट डाले जाएंगे. इसके तुरंत बाद वोटों की गिनती की जाएगी. देर शाम तक निर्वाचन अधिकारी देश के नए उपराष्ट्रपति के नाम की घोषणा कर देंगे.
इस बार मुकाबला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के उम्मीदवार जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar) और विपक्ष की संयुक्त उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा (Margaret Alva) के बीच है. आंकड़ों के लिहाज से देखा जाए तो पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल धनखड़ की जीत सुनिश्चित लग रही है. हम आपको बताते हैं कि उपराष्ट्रपति का चुनाव कैसे होता है, कौन इसमें मतदान करता है, किस तरह वोटों की गिनती की जाती है.
उपराष्ट्रपति के संबंध में क्या कहता है संविधान?
- अनुच्छेद 63 कहता है कि “भारत का एक उपराष्ट्रपति होगा”.
- अनुच्छेद 64 के मुताबिक उपराष्ट्रपति “राज्यों की परिषद का पदेन अध्यक्ष होगा”
- अनुच्छेद 65 के अनुसार “राष्ट्रपति की मृत्यु, इस्तीफे या हटाने की स्थिति में उपराष्ट्रपति उस तारीख तक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेगा जब तक कि नए राष्ट्रपति की नियुक्ति नहीं की जाती.
कब होता है चुनाव?
- संविधान के मुताबिक, उपराष्ट्रपति का कार्यकाल पूरा हो जाने के 60 दिनों के भीतर चुनाव कराना ज़रूरी होता है.
- उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए चुनाव आयोग एक निर्वाचन अधिकारी नियुक्त करता.
- यह निर्वाचन अधिकारी किसी एक सदन का सेक्रेटरी जनरल होता है.
- निर्वाचन अधिकारी चुनाव को लेकर पब्लिक नोट जारी करता है और उम्मीदवारों से नामांकन मंगवाता है.
कौन डाल सकता है वोट?
- राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति अहम संवैधानिक पद हैं.
- दोनों पदों का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से करती है. यानी चुनाव जनता की बजाय उनके द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधि करते हैं।
- उपराष्ट्रपति चुनाव में सिर्फ सांसद ही वोट डाल सकते हैं. वहीं राष्ट्रपति के चुनाव में राज्यों के विधानमंडलों के सदस्यों को भी मतदान का अधिकार होता है.
- उपराष्ट्रपति के चुनाव में राज्यसभा और लोकसभा के मनोनीत सदस्य भी वोट डाल सकते हैं. जबकि राष्ट्रपति चुनाव में किसी भी सदन के मनोनीत सदस्य को वोट नहीं डाल सकते.
यह है उपराष्ट्रपति चुनने की प्रक्रिया
- उपराष्ट्रपति पद के लिए नामांकन भरने के लिए उम्मीदवार को कम-से-कम 20 सांसद बतौर प्रस्तावक और 20 सांसद बतौर समर्थक दिखाने की शर्त पूरी करनी होती है.
- उम्मीदवार संसद के किसी भी सदन का सदस्य नहीं होना चाहिए।
- अगर कोई सांसद चुनाव लड़ना चाहता है तो उसे संसद की सदस्यता से इस्तीफा देना होगा।
आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति
- उपराष्ट्रपति का निर्वाचन संसद के दोनों सदनों के सदस्यों से मिलकर बनने वाले निर्वाचक मंडल यानी इलेक्टोरल कॉलेज के जरिए आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के जरिए होता है.
- संसद का हर सदस्य केवल एक वोट ही डाल सकता है.
- मतदाता को अपनी पसंद के आधार पर प्राथमिकता तय करनी होती है.
- मतदाता वोटिंग के दौरान बैलेट पेपर पर मौजूद उम्मीदवारों की लिस्ट में अपनी पहली पसंद को 1, दूसरी पसंद को 2 और इसी क्रम से आगे की प्राथमिकता देता है.
- राज्यसभा चुने हुए सदस्य (233) और मनोनित सदस्य (12) वहीं लोकसभा के चुने हुए सदस्य (543) और मनोनीत सदस्य (2) दोनों सदनों के कुल 790 निर्वाचक हिस्सा लेते हैं.
काउंटिंग का खास तरीका
- काउंटिंग में सबसे पहले देखा जाता है कि सभी उम्मीदवारों को पहली प्राथमिकता वाले कितने वोट मिले हैं.
- उम्मीदवारों को मिले पहली प्राथमिकता वाले वोटों को जोड़ा जाता है. इसके बाद कुल संख्या को 2 से विभाजित किया जाता है और भागफल में 1 जोड़ दिया जाता है.
- इसके बाद जो संख्या मिलती है उसे वह कोटा माना जाता है, जो किसी उम्मीदवार को काउंटिंग में बने रहने के लिए आवश्यक है.
- अगर कोई उम्मीदवार पहली ही काउंटिंग में जीत के लिए जरूरी कोटे के बराबर या उससे अधिक वोट हासिल कर लेता है तो उस उम्मीदवार को जीता हुआ घोषित कर दिया जाता है.
- अगर रिजल्ट नहीं निकल पाता तो इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाता है. फिर सबसे कम वोट पाने वाले उम्मीदवार को चुनाव की रेस से बाहर कर दिया जाता है. लेकिन उसे पहली प्राथमिकता देने वाले वोटों में यह देखा जाता है कि वोटिंग में दूसरी प्राथमिकता किसे दी गई है. इसके बाद दूसरी प्राथमिकता वाले इन वोटों को दूसरे उम्मीदवारों के खाते में ट्रांसफर कर दिया जाता है.
- इन वोटों के ट्रांसफर करने के बाद अगर किसी उम्मीदवार के वोट कोटे वाली संख्या के बराबर या उससे अधिक हो जाते हैं तो उस उम्मीदवार को विजयी घोषित कर दिया जाता है.
- यह प्रक्रिया तब तक जारी रहती है जब तक किसी एक उम्मीदवार को कोटे के बराबर वोट हासिल ना हो जाए.
विवाद की स्थिति में
राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति चुनाव में किसी भी संदेह या विवाद सामने आने पर संविधान के अनुच्छेद-71 के मुताबिक, फैसले का अधिकार केवल देश की सुप्रीम कोर्ट को है.
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