कुलदीप यादव ने जेल में 28 साल बिताए, पूरी कहानी उन्हीं की जुबानी | Kuldeep Yadav spent 28 years in pakistan jail, read his full story in his own words

अहमदाबाद33 मिनट पहलेलेखक: सारथी एम सागर

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जासूसी के आरोप में पाकिस्तान की जेल में करीब 28 साल बिताने के बाद कुलदीप यादव की वतन वापसी हो गई। पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 22 अगस्त की शाम वाघा बॉर्डर से वे भारत में दाखिल हुए और
ट्रेन से अहमदाबाद स्थित अपने घर पहुंचे। इसी मौके पर भास्कर के रिपोर्टर सारथी एम सागर ने उनसे बातचीत की। पढ़िए, भारतीय एजेंट कुलदीप की कहानी, उन्हीं की जुबानी…

‘मेरा नाम कुलदीप कुमार यादव है। पिता का नाम नानकचंद यादव और माता का नाम मायादेवी है। मेरा जन्म देहरादून में हुआ था, लेकिन पिता ओएनजीसी में थे, इसलिए 1972 में परिवार अहमदाबाद शिफ्ट हो गया था। मैंने पहली से सातवीं तक देहरादून में पढ़ाई की। गुजरात आने के बाद ज्ञानदीप हिंदी हाई स्कूल, अहमदाबाद से 12वीं तक और फिर साबरमती आर्ट्स एंड कॉमर्स कॉलेज में पढ़ाई की। इसके बाद एलएलबी की पढ़ाई शुरू की, लेकिन पूरी नहीं कर पाया। मैंने नौकरी के लिए काफी कोशिशे कीं, लेकिन बदकिस्मती से मेरा कहीं चयन नहीं हुआ। बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने के साथ पान की दुकान खोली। इसके बाद एक गैरेज भी शुरू किया, लेकिन फायदा कुछ नहीं हुआ। कोई आय नहीं थी। इसके बाद कुछ लोगों से मुलाकात हुई और देश के लिए काम करने का अवसर मिला। मैंने भी तय किया कि अच्छा है, देश के लिए मेरा भी कुछ तो योगदान होगा।’

कुलदीप यादव की बहन रेखा यादव, जिन्होंने उनकी रिहाई के लिए लंबा संघर्ष किया।

कुलदीप यादव की बहन रेखा यादव, जिन्होंने उनकी रिहाई के लिए लंबा संघर्ष किया।

पाकिस्तान कब गए और कैसे पकड़े गए?
मुझे वर्ष 1992 में पाकिस्तान गया था। दो साल तक मैंने अपना टास्क पूरा किया। मुझे अच्छी तरह से याद है कि वह 22 जून 1994 की रात 8 से 8.30 बजे का समय था। मैं भारत की सीमा में एंट्री करने की कोशिश में ही
था कि तभी वहां रहने वाले कुछ लोगों को मुझ पर शक हो गया। उन्होंने तुरंत एजेंसी को इसकी सूचना दे दी। कुछ ही मिनटों बाद मुझे अरेस्ट कर लिया गया। पकड़े जाने के बाद मेरी आंखों पर पट्टी बांधकर हथकड़ी पहनाई
गई। इसके बाद आर्मी की गाड़ी से मुझे कहां ले जाया गया था। यह मुझे आज तक नहीं पता। हां, मैं सेना की हिरासत में था। वहीं से पूछताछ शुरू हुई। आर्मी की पूछताछ के दौरान किस तरह प्रताड़ित किया जाता है। यह सभी
जानते ही हैं। मेरे साथ भी वही हुआ। आर्मी की हिरासत में करीब ढाई साल तक यह पूछताछ और मुझ पर यातनाओं का दौर जारी रहा। इसके बाद 1996 में मुझे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।

कुलदीप यादव की 30 साल पहले और अबकी तस्वीर।

कुलदीप यादव की 30 साल पहले और अबकी तस्वीर।

आपने सरबजीत सिंह के बारे में तो सुना ही होगा?
मुझे 1996 में जेल में शिफ्ट किया गया और 1997 में पहली बार मेरी सरबजीत से मुलाकात हुई। सरबजीत और मेरी बहुत अच्छी दोस्ती हो गई थी। हालांकि, उनसे मुलाकात 15 दिनों में ही हो पाती थी, जब जेलर हमसे मिलने आया करता था। वे स्वभाव से भी बहुत अच्छे इंसान थे। उन्होंने देश के लिए बहुत काम किया और देश के लिए ही अपना बलिदान दिया। आखिर में उनके साथ क्या हुआ, यह पता नहीं चल सका। पाकिस्तान सरकार का कहना है कि बीमारी के चलते उनकी मौत हुई। हो सकता है कि उनकी जेल में ही हत्या की गई। मुझे जेल में उनके निधन की खबर मिली। मैंने उन्हें बहुत याद किया।

सरबजीत की मौत के बाद जेल में हुए कई बदलाव
सरबजीत की मौत के बाद जेल में कई बदलाव हुए। पहले पाकिस्तानी कैदी और हमारे बैरक अलग हुआ करते थे, लेकिन हम बीच-बीच में एक-दूसरे मिल सकते थे। लेकिन, सरबजीत की मौत के बाद हम पूरी तरह से अलग हो
गए। अब कोई पाकिस्तानी हमसे नहीं मिल सकता था और न ही हम उनसे। सिक्योरिटीज एक्ट के तहत एक बड़ा बदलाव किया गया था। पहले हमारी हालत बहुत नाजुक थी, लेकिन इसके बाद जेल में कई बदलाव हुए। सरकार ने हमारे लिए सुविधाएं भी बढ़ा दीं थीं और पहले की तुलना में अब खाना भी अच्छा मिलने लगा था। मेडिकल चेकअप की सुविधा में भी सुधार किया गया है। वहां आने वाला डॉक्टर हम लोगों का काफी ख्याल रखा करता था।

कुलदीप यादव 25 अगस्त को अहमदाबाद पहुंचे।

कुलदीप यादव 25 अगस्त को अहमदाबाद पहुंचे।

चूड़ियां-हार बनाने का काम करता था
हम लोग सुबह 5 बजे उठ जाते थे। 6 बजे तक लॉकअप खुल जाते थे। उसके बाद चाय-नाश्ता मिलता था। दोपहर का भोजन और फिर देर शाम खाना। दिन में हमसे कुछ मेहनत वाले काम भी कराए जाते थे। इसके
अलावा जेल में मोतियों का काम भी करते थे। मैं चूड़ियां, हार, पंजाबी झुमके जैसी कई चीजें बनाया करता था।

जेल में खाना कैसा था?
सुबह नाश्ते में चाय, एक रोटी और थोड़ी सी सब्जी मिलती थी। वहीं, दोपहर और रात के खाने में रोटी, दाल, चिकन और अलग-अलग तरह की सब्जियां भी परोसी जाती थीं।

कुलदीप से मिलते ही लिपटकर रोने लगी बहन।

कुलदीप से मिलते ही लिपटकर रोने लगी बहन।

पाकिस्तानी कैदियों का व्यवहार कैसा था?
पाकिस्तानी कैदियों के साथ हम सभी भारतीयों के अच्छे संबंध थे। भले ही हम भारत से थे, लेकिन वे हमसे बहुत अच्छे से पेश आया करते थे। हम एक-दूसरे को अपने-अपने देश की बातें बताया करते थे। सच यही है कि निचले स्तर पर दोनों ही देश के लोग एक-दूसरे को प्यार करते हैं। जेल स्टाफ के व्यवहार के बारे में तो यही कहना चाहूंगा कि दोनों ही पक्ष थे। कुछ सॉफ्ट अधिकारी और कर्मचारी भी तो कुछ बहुत सख्त भी। हालांकि, अच्छे अधिकारियों और कर्मचारियों की संख्या 80 प्रतिशत थी।

कैसे रिहा हुए?
मेरी सजा 26 अक्टूबर 2021 को खत्म हुई। उसके बाद 2-3 बाद मुझे खबर मिली कि मैं रिहा होने जा रहा हूं, लेकिन कुछ नहीं हुआ। फिर 24 जून, 2022 को मुझे सुप्रीम कोर्ट में पेश किया गया और उन्होंने 15 दिनों के भीतर
मेरी रिहाई का आदेश दिया। इसलिए उस सरकार और हमारी सरकार की कृपा से मैं आज आपके सामने हूं।

अहमदाबाद के चांदखेड़ा इलाके में स्थित कुलदीप यादव का घर।

अहमदाबाद के चांदखेड़ा इलाके में स्थित कुलदीप यादव का घर।

परिवार को आपके पाकिस्तान में होने की सूचना कैसे मिली?
साल 1996 में मुझे लाहौर की जेल स्थानांतरित किया गया। इसके बाद 1997 में मुझे परिवार को पत्र लिखने का मौका मिला। मेरे भेजे गए लेटर के जरिए ही परिवार को मेरे बारे में मालूम हुआ। उसके बाद से हमारा पत्राचार
चलता रहा, लेकिन सरबजीत की हत्या के बाद यह भी बंद हो गया। मुझे आज भी याद है कि अहमदाबाद में परिवार से आखिरी बार यही बोलकर निकला था कि काम की तलाश में जा रहा हूं।

जेल में कितने भारतीय हैं?
सही संख्या तो नहीं बता सकता, क्योंकि कैदियों के एक जेल से दूसरी जेल में शिफ्ट करने और रिहाई का सिलसिला चलता रहता है। हां मेरे आसपास करीब 30 भारतीय थे। इनमें से ज्यादातर ने अपनी सजा पूरी कर ली है।
कई कैदी शारीरिक और मानसिक रूप से असमर्थ हो गए हैं। चलना-फिरना तो दूर वे बोल भी नहीं पाते। इसलिए मैं सरकार से अपील करता हूं कि कृपया हमारे उन भारतीय कैदियों की रिहाई की कोशिश करें। कम से कम उनके लिए तो कोशिश की ही जा सकती है, जिनकी सजा पूरी हो चुकी है। अगर कुछ ऐसे पाकिस्‍तानी हमारे देश की जेलों में हैं तो उन्‍हें भी रिहा कर दिया जाए। अगर हम उन्हें छोड़ेंगे तो वे उन्हें छोड़ देंगे।

परिवार के लोगों के साथ कुलदीप यादव।

परिवार के लोगों के साथ कुलदीप यादव।

भारत में कितना बदलाव देखते हैं?
परिवर्तन तो पृथ्वी और आकाश से भी बड़ा हो गया है। भारत में तो इतना विकास हो चुका है कि कुछ भी पहचानना मुश्किल हो रहा है। (मुस्कुराते हुए) सब कुछ बदल गया है, बस इतना ही कहूंगा। यहां तक ​​कि मेरे गृह क्षेत्र
को भी पहचान नहीं पा रहा हूं। परिवार के लोग मुझे लेने नहीं पहुंचते तो मैं अकेला यहां मुश्किल से ही पहुंच पाता।

22 अगस्त को वाघा बॉर्डर से भारत पहुंचे कुलदीप
कुलदीप बताते हैं कि 22 अगस्त को पाकिस्तान से उनके साथ शंभूनाथ नाम के भी एक शख्स को रिहा किया गया था। दोनों वाघा बॉर्डर से भारत में दाखिल हुए। कुलदीप रात के करीब 11 बजे अमृतसर पहुंचे और घर में फोन
किया। उनकी रिहाई की बात सुनकर घर में जश्न शुरू हो गया। परिवार के सभी लोग फोन पर मेरी आवाज सुनना चाहते थे। खुशी के मारे घर में रात भर कोई नहीं सोया। कुलदीप ट्रेन के जरिए 25 अगस्त को अहमदाबाद पहुंचे
और 30 सालों बाद परिवार से मिले।

कुलदीप यादव के घर में टंगी उनके माता-पिता की तस्वीर।

कुलदीप यादव के घर में टंगी उनके माता-पिता की तस्वीर।

देश की सरकार के बारे में क्या कहेंगे?
हमारे प्रधानमंत्री दुनिया के सर्वश्रेष्ठ प्रधानमंत्री हैं। उनके द्वारा किए गए काम के लिए उन्हें सलाम। जिस तरह से उन्होंने देश के लिए काम किया है तो मैं भी उन्हें पूरा सपोर्ट करता हूं। वहीं, अजीत डोभाल भी बहुत अच्छे इंसान
हैं, जो देश के लिए बहुत काम कर रहे हैं। वे भी सलाम के पात्र हैं।

कैसा महसूस कर रहे हैं?
मैं आपको बता नहीं सकता हूं कि 32 साल बाद जब परिवार परिवार से मिला तो मेरे मन में कितनी खुशी थी। मैं तो अपना जीवन खत्म समझ लिया था। इसलिए यह तो मुझे दूसरा जन्म मिला है। परिवार में भाई-बहन है।
सभी के चेहरों पर खुशी है। उनकी खुशी देखकर मेरी सारी परेशानियां दूर हो गई हैं। मैं इसे शब्दों में बयां नहीं कर सकता कि परिवार ने मेरे लिए कितना संघर्ष किया? कितना दर्द झेला। इसका तो बस अंदाजा ही लगाया जा
सकता है।

कुलदीप यादव के घर के अंदर का नजारा।

कुलदीप यादव के घर के अंदर का नजारा।

सरकार से क्या चाहते हैं?
मैं आपके मीडिया के जरिए सरकार से अपील करना चाहता हूं कि पुनर्वास में मेरी मदद करें। आर्थिक रुप से मेरा परिवार बहुत परेशान है। मुझे पैसों की बहुत जरूरत है। क्योंकि, मैं 32 साल बाद लौटा हूं। मैं अब 59 साल का
हो चुका हूं। शारीरिक रूप से कमजोर हो जाने के चलते मेहनत के काम नहीं कर पाऊंगा। इसलिए अब मेरे लिए यह कहना मुश्किल है कि मैं आगे क्या करूंगा? क्योंकि मेरे पास कोई अनुभव नहीं है। फिलहाल भाई-बहनों पर
निर्भर हूं। अगर सरकार, मीडिया या देश के लोग मेरी आर्थिक मदद करते हैं तो यह मेरे लिए खुशी की बात होगी। सरकार की ओर से मेरे लिए अभी तक किसी मुआवजा का ऐलान नहीं किया गया है।

कुलदीप की मदद की अपील…
कुलदीप वर्तमान में हार्ट, कान, टीबी और जैसी कई बीमारियों से जूझ रहे हैं। उनके परिवार की भी आर्थिक स्थिति बहुत खराब है। अगर आप उनकी आर्थिक मदद करना चाहते हैं तो यहां उनके बैंक की डिटेल्स दी जा रही है…

नाम: यादव संजय कुमार
नानकचंद एसबीआई बैंक
खाता संख्या -30866589304
IFSC-SBIN0005743
शाखा कोड: 5743
अहमदाबाद (गुजरात)

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