शिंदे-फडणवीस सरकार बनने के बाद रास्ते हुए साफ; आदिवासियों को सता रही हटाए जाने की चिंता | Bhaskar Ground Report Bullet train project accelerates after new government Maharashtra Covid center

  • Hindi News
  • National
  • Bhaskar Ground Report Bullet Train Project Accelerates After New Government Maharashtra Covid Center

मुंबई21 दिन पहलेलेखक: विनोद यादव

  • कॉपी लिंक

महाराष्ट्र में नई शिंदे-फडणवीस सरकार ने बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट को तेजी से पूरा करने की घोषणा की है। इसके चलते एमएमआरडीए ने बीकेसी (बांद्रा-कुर्ला) में बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट के लिए आवश्यक भूखंड को एनएचएसआरसीए को सौंपने का प्रोसेस शुरू कर दिया।

दरअसल, जिस जगह के 24 मीटर नीचे बीकेसी स्टेशन का निर्माण होना है, उस जमीन के ऊपर जम्बो कोविड सेंटर है। यह सेंटर अब हटाया जा रहा है और करीब सितंबर के अंत तक जमीन एमएमआरडीए को मिल जाएगी। इसके अलावा ठाणे स्टेशन की जमीन का मसला भी पर्यावरण की वजह से जो कुछ पैमाने पर उलझा हुआ था, वह भी नई सरकार के आने के बाद सुलझ रहा है।

आदिवासी बोले-हमारी आवाज दबाई जा रही है, नई राष्ट्रपति मुर्मू के पास जाएंगे
मुंबई से करीब 74 किमी दूर पालघर जिले के खानिवडे गांव में धान की रोपाई कर रही 35 वर्षीय आदिवासी शीतल शांताराम इन दिनों सो नहीं पातीं। उनके उपजाऊ खेत और घर प्रोजेक्ट में आ रहे हैं। वे कहती हैं, यदि हमें पुनर्वास पैकेज के तहत जमीन दी भी जाती है, तो वह खेती के लायक होगी या नहीं? इसकी कोई गारंटी नहीं है।

शीतल का कहना है कि पालघर जिले के जिन गांवों से बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट जा रहा है, वहां के आदिवासी समुदाय की ऐसी ही राय है।

शीतल का कहना है कि पालघर जिले के जिन गांवों से बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट जा रहा है, वहां के आदिवासी समुदाय की ऐसी ही राय है।

प्रोजेक्ट की आड़ में आदिवासी समुदाय की आवाज दबाई जा रही
आदिवासी एकता परिषद भूमिसेना के प्रमुख धोदडे कहते हैं कि प्रोजेक्ट की आड़ में पालघर के आदिवासी समुदाय की आवाज दबाई जा रही है। नई सरकार आने के बाद इसमें और तेजी आने का डर है। इसलिए हम आदिवासियों को अब नई राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से उम्मीद बंधी है। उनका कहना है कि 40 साल पहले यहां सूर्या डैम के कारण विस्थापित हुए लोगों को अब तक ठिकाना नहीं मिला है।

गांव उजाड़े जाने के गम से बीमार पड़ रहे लोग
26 साल के अनिल दलवी का कहना है कि उसका मकान भी प्रोजेक्ट में आ रहा है। मुझे यहां के पेड़ों के कटने का भी अफसोस है। यहां लगभग 50 घर हैं, जिनमें से पहले चरण में लगभग 15 घर प्रोजेक्ट के कारण उजड़ने वाले हैं। संतोष गांव उजड़ने की बात को सोच कर बीमार पड़ गए हैं। उनकी पत्नी खेतों में काम करने के लिए जाती है।

अनिल का कहना है कि लोगों को अपने घर टूटने का भी खतरा है।

अनिल का कहना है कि लोगों को अपने घर टूटने का भी खतरा है।

गांव में आने वाले अफसर कागजों पर हस्ताक्षर करने को कहते हैं। वे आश्वासन देते हैं कि हाई स्कूल पास लोगों को नौकरी दी जाएगी। लेकिन आदिवासी परिवारों में शिक्षा का स्तर कम होने के कारण मुट्‌ठी भर को ही नौकरी मिलेगी। ऐसे में ज्यादातर गांव वालों का कहना है कि वे अपनी जमीन प्रोजेक्ट के लिए नहीं देंगे। उनका कहना है कि मुआवजे को लेकर भी स्थिति स्पष्ट नहीं है।

खबरें और भी हैं…
Previous Post Next Post